Sunday, June 2, 2013

Re: [IAC#RG] Himanshu begins fast unto death at Jantar Mantar from today

श्री.हरिगोविंद विश्वकर्माजी ने लिखा है -
 "
इस देश पर और यहां के लोकतंत्र पर पूंजीपतियों और उनके दलाल नेताओं (कांग्रेस और बीजेपी दोनों के नेता)  सत्तावर्ग ने  क़ब्ज़ा कर लिया है।  वे राष्ट्र के संसाधन का अपेन निहित स्वर्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इनकी तादाद बमुश्किल पांच फ़ीसदी भी नहीं हैं लेकिन देश की 95 से ज़्यादा संपत्ति और भूमि पर इनका ही क़ब्ज़ा है।"
मै अपनी समझ बनाने के हेतू  से नम्रता पूर्वक कूछ सवाल पुछ रहा हु| आशा है जबाब दे कर सहयोग करेंगे. सवाल -

१) बाकी ९५ फ़ीसदी लोगोने ऐसा क्यो होने दिया और अभी भी होने दे रहे है?
२)सारी गलत व्यवस्था के लिये क्या सिर्फ ५
फ़ीसदी हि जिम्मेदार है? या  बाकी ९५ फ़ीसदी भी इस के लिये जिम्मेदार है? अगर हा तो कैसे?
३)गलत व्यवस्था को ठीक करने के लिये ये ९५
फ़ीसदी क्या और कैसे कर सकते है?
सस्नेह
मोहन हिराबाई हिरालाल
 


2013/6/3 Hari Govind Vishwakarma <hgvkarma@gmail.com>

इस देश पर और यहां के लोकतंत्र पर पूंजीपतियों और उनके दलाल नेताओं (कांग्रेस और बीजेपी दोनों के नेता)  सत्तावर्ग ने  क़ब्ज़ा कर लिया है।  वे राष्ट्र के संसाधन का अपेन निहित स्वर्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इनकी तादाद बमुश्किल पांच फ़ीसदी भी नहीं हैं लेकिन देश की 95 से ज़्यादा संपत्ति और भूमि पर इनका ही क़ब्ज़ा है। ये लोग जिस पौधे की फसल काट रहे हैं उसे गांधी और बिनोबा भावे जैसे सत्ता के दलालों और फ़र्ज़ी शांतिवादियों ने रोपा है। उसके जैसा फ्राड राजनेता भारतीय राजनीति में नहीं है। देश में जितनी समस्याएं है सहकी जड़ गांधी है।

 

हरिगोविंद विश्वकर्मा

मुंबई


2013/6/2 Anurag Modi <sasbetul@yahoo.com>
हिंमाशुजी के इस चितन मे उन्होंने जो मुद्दे रखे है, उसका स्वागत है. लेकिन मुझे लगता है, इस मामले मे नक्सली क्या सोच रहे है, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है.  इस सारे मामले मे वो सिर्फ़ सरकार कि हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा से दे रहे है, ऎसा नही है. वो खुद भी रणनीति के तौर पर हिंसा मे विश्वास करते है, सिर्फ़ सरकार  ऎसा विश्वास करती है,ऎसा नही है.  हांलाकि यह सही है कि सरकार नक्स्लीयो को प्रतिहिंसा के जाल  मे फ़ंसाकार अपनी हिंसक ताकत को और मारक और न्यायोचित बनाना चाहती है, और वो सरकार के इस जाल मे फ़ंसते जा रहे है.   
खैर, इस मुद्दे पर बहस जरुरी है, इस उपवास के बहाने क्या हम इस बहस को आगे बढाने के लिए तैयार है. मै शुरुवात के तौर पर अपना लेख/नोट साथ जोड रहा हुं. मै जानता हूं, यह नाकाफ़ी है, लेकिन बहस कि शुरुवात करने के काम तो आ सकता है.
अनुराग मोदी
समाजवादी जन परिषद


From: Mohan HirabaiHiralal <mohanhh@gmail.com>
To: indiaresists@lists.riseup.net
Cc: war <women-against-sexual-violence@googlegroups.com>; bharat-chintan <bharat-chintan@googlegroups.com>; mkss-saathi@googlegroups.com
Sent: Sunday, June 2, 2013 3:15 PM
Subject: Re: [IAC#RG] Himanshu begins fast unto death at Jantar Mantar from today

प्रिय हिमांशू ,
इस आत्म चिंतन मे हम आपके साथ है|
 आत्म चिंतन के लिये निम्न किताबे फिर से पढना और  उस प्रकाश मे मुल समस्या और उस के कारनो  का आकलन करना  उपयोगी होगा -
  1. "हिंद स्वराज" - मोहनदास करमचंद गांधी
  2. "स्वराज शास्त्र" - विनोबा भावे
  3. "गांधी मैने जैसा देखा समझा" - विनोबा भावे (संपादक : कांतिभाई शाह )
मै भी यह किताबे फिरसे  पढ रहा हु|
व्यक्तिगत चिंतन के बाद सेवाग्राम या पवनार मे समूह चिंतन  करना उपयुक्त होगा|
सस्नेह
मोहन हिराबाई हिरालाल




2013/6/1 Kavita Srivastava <kavisriv@gmail.com>
 सभी जुड़े 

 करोड़ो आदिवासियों के जीवन एवं सम्मान के प्रश्न पर 

देश भर में आत्म चिंतन को बढ़ावा देने के लिए 

जन्तर मंतर, नई दिल्ली पर आज 1 जून 2013 से सुबह 

 अनिश्चितकालीन उपवास 


उपवासकर्ता हिमांशु कुमार

जिन्होंने लगभग  दो दशक तक छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा क्षेत्र  में काम किया 


हिमांशु कुमार की हम सब से अपील 


आदिवासियों के संसाधनों पर पैसे वाली कंपनियों के कब्जा कर लेने और आदिवासियों को उनके अपने ही घर से भगा देने का मुद्दा इस देश के लिये कोई बड़ी समस्या नहीं बन पा रहा है 

यह बात सच है कि हम तभी चेतते हैं जब समाज में किसी मुद्दे पर कहीं हिंसा होती है . विनोबा का भूदान आन्दोलन भी भूमि को लेकर फैले हुए अन्याय और उससे उत्पन्न होने वाली हिंसा में से ही  निकला था .

अभी आदिवासी इलाकों में अमीर कंपनियों के लोभ के लिये करोड़ों आदिवासियों के जीवन , आजीविका और सम्मान पर हमला जारी है , 

भारत को एक राष्ट्र के रूप में सोचना पड़ेगा कि यह देश अपने मूल निवासियों के साथ क्या सुलूक करेगा ?

क्या हम आदिवासियों की ज़मीनों पर पुलिस की बंदूकों के दम पर कब्ज़ा जायज़ मानते हैं ? क्या हम मानते हैं कि आदिवासियों की बस्तियों में आग लगा कर उन्हें उनके गाँव से भगा कर उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा करने के बाद हम इस देश में शांति ला सकते हैं ?

एक बार हमें अगर अपने ही देशवासियों के साथ अन्याय करने की आदत पड़ गई तो क्या यह आदत हमें किस किस के साथ अन्याय करने का नहीं खोल देगी ?

आज हम आदिवासी पर हमला करेंगे ,फिर हम दलितों को मारेंगे, फिर हम गाँव वालों को मारेंगे . और एक दिन हम चारों तरफ से दुश्मनों से अपने ही बनाये गये दुश्मनों से घिर जायेंगे . 

इसलिये आज ही हमें आदिवासियों के साथ हमारे सुलूक की समीक्षा करनी चाहिये .

मेरी विनम्र कोशिश है कि इसी मौके को हम आदिवासियों के साथ इस देश को कैसा सुलूक करना चाहिये इस मुद्दे पर सोचने के रूप में सदुपयोग करें .

इस मुद्दे पर आत्म चिंतन करने के लिये मैं एक जून से जंतर मंतर पर एक उपवास शुरू करने का प्रस्ताव करता हूं

इस दौरान सामान मन के साथी अपने अपने क्षेत्र में इस विषय में कार्यक्रम और चर्चा करेगे तो हम देश भर में न्याय के पक्ष में और अन्याय के विपक्ष में एक माहौल तैयार कर पायेंगे .

आपके सुझाव का स्वागत है .


हिमांशु कुमार 




--
Kavita Srivastava
(General Secretary) PUCL Rajasthan

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Mohan Hirabai Hiralal
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Thanks & Regards
 
Hari Govind Vishwakarma
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